हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है, जो हमारे देश की समृद्ध भाषा हिंदी की महत्ता को दर्शाता है। हिंदी न केवल हमारी मातृभाषा है, बल्कि यह हमारे देश की संस्कृति, साहित्य और इतिहास की गहरी जड़ों से जुड़ी हुई है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करना और उसकी महानता को पहचान दिलाना है। हिंदी दिवस पर कवि और साहित्यकार दोहों के माध्यम से हिंदी भाषा की महिमा का बखान करते हैं। दोहा हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह छोटे-छोटे छंदों में बड़े अर्थों को संजोने की अद्वितीय क्षमता रखता है।
दोहा क्या है?
दोहा एक छंद होता है जो प्राचीन काल से ही हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता आया है। यह चार पंक्तियों का होता है, जिसमें दो पद होते हैं। प्रत्येक पद में 13-11 की मात्रा होती है। दोहे में गहन अर्थ को कम शब्दों में व्यक्त करने की कला होती है। यह छंद अक्सर भक्ति, नीति, और प्रेम के भावों को व्यक्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
हिंदी दिवस का महत्व
हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा को बढ़ावा देना है। आज के युग में, जहाँ अंग्रेज़ी का वर्चस्व बढ़ रहा है, हिंदी को उसकी सही पहचान दिलाना बहुत आवश्यक हो गया है। हिंदी दिवस पर, हिंदी भाषा की संस्कृति और साहित्य को प्रोत्साहन देने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन हम अपनी भाषा के प्रति गर्व महसूस करते हैं और उसे और अधिक सशक्त बनाने का संकल्प लेते हैं।
दोहों का हिंदी साहित्य में योगदान
दोहा हिंदी साहित्य का एक अमूल्य खजाना है। कबीर, रहीम, तुलसीदास जैसे महान कवियों ने दोहों के माध्यम से समाज को जीवन के महत्वपूर्ण मूल्य सिखाए। इन दोहों में जीवन की सच्चाइयों, नैतिकता, भक्ति, और प्रेम के संदेश छिपे होते हैं। हिंदी दिवस पर इन दोहों का पाठ करना और उनका विश्लेषण करना एक महान परंपरा बन चुकी है।
कबीर के दोहे: जीवन का सच्चा ज्ञान
संत कबीर के दोहे आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। उनके दोहे सीधे-सादे शब्दों में गहरे अर्थ समेटे होते हैं। कबीर के दोहों में जीवन, समाज, और धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण संदेश होते हैं। हिंदी दिवस के अवसर पर उनके कुछ प्रसिद्ध दोहे:
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।”
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।।
“पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ !
घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!
गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय ।।
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।।
मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि ।
कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि ॥
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार।।
यह दोहा हमें आत्म-मूल्यांकन करने की शिक्षा देता है, और यह बताता है कि हमें दूसरों की बुराइयों को देखने से पहले अपने भीतर झांकना चाहिए।
रहीम के दोहे: प्रेम और मित्रता की सीख
अब्दुल रहीम खानखाना, जिन्हें रहीम के नाम से भी जाना जाता है, के दोहों में प्रेम, मित्रता और विनम्रता की शिक्षा मिलती है। रहीम के दोहे हमारे जीवन को सरल और सुखमय बनाने के संदेश देते हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध दोहे हिंदी दिवस पर विशेष रूप से याद किए जाते हैं:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।।”
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह,
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।
रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।।
यह दोहा प्रेम और संबंधों में संयम और विनम्रता की महत्ता को दर्शाता है। यह हमें यह सिखाता है कि रिश्तों में अगर कड़वाहट आ जाए, तो उसे सुधारना कठिन हो जाता है।
तुलसीदास के दोहे: भक्ति और आस्था की शक्ति
गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस और अन्य ग्रंथों के माध्यम से भक्ति और आस्था का जो मार्ग दिखाया, वह आज भी अनुकरणीय है। उनके दोहे भक्ति की भावना से परिपूर्ण होते हैं और हमें भगवान की भक्ति के प्रति समर्पित होने का संदेश देते हैं। हिंदी दिवस पर तुलसीदास के दोहे हिंदी साहित्य की धरोहर के रूप में उभरते हैं:
“तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर।।”
दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर।
संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥
‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
‘तुलसी’ साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक॥
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
यह दोहा हमें मीठे वचनों की महत्ता बताता है। अच्छे शब्दों से हम दूसरों के दिल जीत सकते हैं और समाज में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बना सकते हैं।
हिंदी साहित्य में दोहों की आधुनिक प्रासंगिकता
हालांकि दोहों का प्रारंभ प्राचीन काल में हुआ था, लेकिन आज भी ये उतने ही प्रासंगिक हैं। आधुनिक युग में भी हिंदी साहित्य के छात्र और विद्वान दोहों का अध्ययन करते हैं। हिंदी दिवस पर, विद्यालयों और महाविद्यालयों में दोहा लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिससे न केवल हिंदी भाषा का प्रसार होता है, बल्कि युवा पीढ़ी को भी अपने साहित्यिक धरोहर से जुड़ने का अवसर मिलता है।
हिंदी दिवस 2024 पर दोहा लेखन
हिंदी दिवस के अवसर पर दोहा लेखन एक उत्कृष्ट गतिविधि मानी जाती है। छात्र और कवि इस दिन अपनी भावनाओं को दोहों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। इस प्रकार की प्रतियोगिताओं से बच्चों में हिंदी के प्रति लगाव और रुचि बढ़ती है। साथ ही, हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है।
दोहों के माध्यम से समाज सुधार
दोहों के सामाजिक संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। कबीर और रहीम जैसे कवियों ने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार किया। आज के समय में भी दोहे समाज में जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकते हैं। हिंदी दिवस पर, इन दोहों को पढ़कर हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का एहसास होता है और हम समाज के सुधार की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं।
हिंदी भाषा की उन्नति में दोहों की भूमिका
हिंदी भाषा की उन्नति में दोहों की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है। दोहे न केवल साहित्य का हिस्सा हैं, बल्कि ये भाषा की सरलता और सजीवता को भी दर्शाते हैं। हिंदी दिवस के अवसर पर जब हम इन दोहों का पाठ करते हैं, तो यह हमें हमारी भाषा की सरलता, मधुरता और प्रभावशाली अभिव्यक्ति की याद दिलाता है।
निष्कर्ष
हिंदी दिवस हमारे देश की भाषा, साहित्य, और संस्कृति का उत्सव है। इस दिन को मनाते हुए हम न केवल हिंदी भाषा की समृद्धि को पहचानते हैं, बल्कि उसे और भी अधिक मजबूत बनाने का संकल्प लेते हैं। दोहे, हिंदी साहित्य का एक अमूल्य खजाना हैं और हिंदी दिवस पर उनका विशेष स्थान होता है। कबीर, रहीम और तुलसीदास जैसे महान कवियों के दोहे आज भी हमें जीवन की सच्चाइयों और मूल्यों का पाठ पढ़ाते हैं। हिंदी दिवस पर इन दोहों का पाठ और उनकी चर्चा हमारे साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने और उसे आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
हिंदी भाषा का सम्मान करना और उसे प्रोत्साहित करना हमारा कर्तव्य है, और हिंदी दिवस इस दिशा में एक महत्वपूर्ण अवसर है।