शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन शरद ऋतु की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस दिन को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए पवित्र माना जाता है। शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं हमें भारतीय संस्कृति और आस्थाओं की गहराई से परिचित कराती हैं।
शरद पूर्णिमा का महत्व (Significance of Sharad Purnima)
शरद पूर्णिमा का महत्व न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी बहुत गहरा है। यह दिन चंद्रमा की विशेष ऊर्जा से भरपूर माना जाता है, और कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पूर्ण होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चंद्रमा से अमृत का वर्षा होती है, जो शरीर और मन के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
पौराणिक कथा (The Mythological Story of Sharad Purnima)
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भारतीय पुराणों में मिलती हैं। इनमें से दो प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
(i) देवी लक्ष्मी और कोजागर व्रत की कथा (The Story of Goddess Lakshmi and Kojagari Vrat)
प्राचीन समय में एक राजा और रानी थे। राजा ने अपने जीवन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना किया और उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। राजा और उसकी पत्नी देवी लक्ष्मी के प्रति अत्यधिक श्रद्धालु थे, इसलिए उन्होंने शरद पूर्णिमा की रात को कोजागर व्रत करने का निर्णय लिया।
इस व्रत का उद्देश्य देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करना था। शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और जो भी जागरण करके उनकी पूजा करता है, उसे धन-धान्य और वैभव से नवाजती हैं। राजा और रानी ने पूरी रात जागकर देवी लक्ष्मी की आराधना की और परिणामस्वरूप देवी लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपार धन और समृद्धि का आशीर्वाद दिया।
(ii) भगवान कृष्ण और रासलीला की कथा (The Story of Raasleela)
शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण की रासलीला के साथ भी जोड़ा जाता है। यह कथा भगवान कृष्ण और गोपियों के दिव्य प्रेम की गाथा है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से गोपियों के साथ रासलीला का आयोजन किया था।
गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति असीम थी, और वे भगवान कृष्ण के साथ रासलीला में शामिल होकर खुद को भाग्यशाली मानती थीं। भगवान कृष्ण ने अपनी माया से इस रासलीला में हर गोपी को यह आभास कराया कि वे केवल उनके साथ ही नृत्य कर रहे हैं। यह प्रेम और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है, जो शरद पूर्णिमा को और भी खास बनाता है।
(iii) चंद्रमा और अमृत वर्षा की कथा (The Story of Amrit Varsha)
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पूर्ण होता है और उसकी किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं।
कहा जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में शरीर और मन को शीतलता और ऊर्जा प्रदान करने की शक्ति होती है। इसी कारण, शरद पूर्णिमा की रात को लोग खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं और फिर उसका सेवन करते हैं। इस खीर को अमृत के समान माना जाता है और यह स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि (Sharad Purnima Puja Vidhi)
शरद पूर्णिमा के दिन पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग देवी लक्ष्मी और भगवान चंद्रमा की पूजा करते हैं। यहां शरद पूर्णिमा की पूजा विधि का वर्णन किया गया है:
- प्रातः स्नान और पूजा की तैयारी: इस दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थल को साफ करके देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की प्रतिमा स्थापित करें।
- धूप, दीप और नैवेद्य: पूजा के समय धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें। विशेष रूप से खीर का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
- चंद्रमा की पूजा: रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें। चंद्रमा की रोशनी में खीर रखकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
- जागरण: इस दिन रातभर जागरण करने का भी महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति शरद पूर्णिमा की रात जागकर देवी लक्ष्मी की उपासना करता है, उसे अपार धन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय है। इस दिन की पूजा विधि और पौराणिक कथाएं हमें आस्था, प्रेम, और भक्ति के महत्व की याद दिलाती हैं। शरद पूर्णिमा की पवित्र रात को जागरण करके देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण की उपासना करने से न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और संतोष भी मिलता है।